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मिथिलांचल की ललकार है,
अलग राज्य समय की पुकार है,
कम नहीं स्वीकार है.
जगत जननी सीता माता की पावन धरती मिथिलांचल में पैदा लेने के कारण हम सब इस पावन भूमि के ऋणी हैं.सीता माता की इस पावन धरती का ऋण चुकाना तो संभव नहीं है परन्तु यदि हम लोगों के प्रयास से इस पवित्र भूमि का थोड़ा भी विकास हो जाय तो अपने आप को धन्य समझेंगे. मिथिलांचल के विकास के लिए प्रयत्न करना न सिर्फ हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है बल्कि परम कर्तव्य और धर्म भी है.
आजादी से लेकर आज तक मिथिलांचल का समुचित विकास नहीं हो पाया है. न तो केंद्र सरकार के द्वारा और न ही राज्य सरकार के द्वारा मिथिलांचल के विकास के लिए उचित प्रयास किया गया. आज जब हम देश के अन्य भागों से मिथिलांचल की तुलना करते हैं तो अपने आप को बहुत ठगे हुए महसूस करते हैं. बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, रेल आदि में मिथिलांचल देश के सबसे पिछले पायदान पर है. नए कल-कारखाने लगाने की बात तो दूर जो पहले से चल रहे थे वो भी बंद हो गए. बाढ़ और सुखाड़ की समस्या तो जस की तस है ही. ऐसे में अलग मिथिलांचल राज्य की मांग न सिर्फ जायज है बल्कि समय की पुकार भी है. जब तक पृथक मिथिलांचल राज्य का गठन नहीं होगा तब तक इस पिछड़े क्षेत्र का विकास हो पाना असंभव है. तेज विकास के लिए छोटे-छोटे राज्यों का गठन जरूरी है. छोटे राज्यों के गठन से न सिर्फ आर्थिक विकास को गति मिलती है बल्कि प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से भी यह बेहतर परिणाम दे सकता है. बड़ी सीमायें शासन में परेशानी पैदा करती हैं. इतिहास साक्षी है जब-जब राज्यों का विभाजन हुआ तब-तब विकास की गति तेज हुई है. इसके कई उदहारण हमारे सामने है. बटवारा के बाद गुजरात ने महाराष्ट्र को और हरियाणा ने पंजाब को विकास में पीछे छोड़ दिया. आज बिहार का योजना आकार २८ हजार करोड़ और झारखण्ड का १६ हजार करोड़ का है लेकिन यदि संयुक्त बिहार रहता तो दोनों के योग के बराबर यानि ४४ हजार करोड़ का योजना आकार नहीं होता. इससे स्पष्ट पता चलता है की अलग मिथिलांचल राज्य के गठन होने से बिहार और मिथिलाचल दोनों को फायदा होगा. मिथिलांचल की जनता अब बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है. अब यहाँ के लोग अलग राज्य के गठन होने तक संघर्ष और आन्दोलन जारी रखने का संकल्प ले चुके हैं.
याचना नहीं अब रण होगा, जीवन या की मरण होगा,
मिथिलांचल राज्य अलग होगा.
सरोज चौधरी
संस्थापक, अध्यक्ष
मिथिलांचल मुक्ति मोर्चा
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