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अशोक पेपर मिल के पुनः चालू होने की खबर सुन मिथिलांचल वासियों में एक बार फिर आशा की किरण जगी थी. लोगों को लगने लगा था की अशोक पेपर मिल के पुनः चालू हो जाने से मिथिलांचल के विकास का एक नया अध्याय जो कभी बंद हो गया था शुरू होगा. मिथिलांचल का विकास होगा, लोगों को रोजगार मिलेगा आदि-आदि सपना लोग देखने लगे थे. लोगों में काफी उमंग और उत्साह था परन्तु शनिवार १० नवम्बर २०१२ को जो इस घटना क्रम में जो नया मोड़ आया इसका तो किसी को अनुमान भी नहीं था. दरअसल १० नवम्बर की रात फायरिंग में मिल के निष्कासित श्रमिक के पुत्र सुशील साह की मौत हो गयी और दो अन्य घायल हो गए. इस मिल गोलीकांड ने लोगों के आशा को निराशा में बदल दिया. इस सारे घटना क्रम को देखने से सरकार, प्रशासन और मिल प्रबंधन की उदासीनता, लापरवाही और गलत मानसिकता स्पष्ट उजागर होता है. लगता है ये सभी लोग मिलकर मिल को चालू नहीं करना चाहते थे बल्कि मिल के सामानों को बेचना चाहते थे. ये तो धन्यवाद देना चाहिए वहां के स्थानीय श्रमिकों को जिन्होंने इनके गलत मानसिकता को भांप लिया और अपने जान पर खेलकर मिल के सामानों को बिकने से बचा लिया. बहरहाल जो होना था सो तो हो गया अब पुनः मिल कैसे चालू हो इसपर गंभीरता पूर्वक विचार होना चाहिए. दोषियों पर कड़ी से कड़ी कारवाई होनी चाहिए. मृतकों और घायलों के परिवार वालों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए. समस्त मिथिलांचल वासियों को मिल पुनः कैसे चालू हो इसपर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और इसके लिए उचित प्रयास करना चाहिए ताकि मिल पुनः चालू हो सके. ये मिथिलांचल के व्यापक हित में होगा.
सरोज चौधरी
संस्थापक, अध्यक्ष
मिथिलांचल मुक्ति मोर्चा
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