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जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है,
छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है।
मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है,
वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है।
बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं,
बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं।
भारत एक विशाल आबादी वाला गाँव, गरीब, मजदूर एवं कृषि प्रधान देश है। यहाँ की अस्सी प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है जिसमे 76% लोग कृषि कार्य पर निर्भर हैं। जब तक गाँव, गरीब, मजदूर और किसान सुखी और मजबूत नहीं होंगें तब तक भारत मजबूत राष्ट्र बन ही नहीं सकता है।
आजादी से लेकर आज तक केंद्र और राज्य सरकार के गलत नीतियों के कारण इनके हालत में कुछ ख़ास सुधार नहीं हो पाया है। सरकारी उदासीनता के कारण स्थिति यह है कि किसान या तो किसानी छोड़ रहे हैं या आत्महत्या करने को विवश हैं।
आजादी के 68 साल बीत जाने के बावजूद भी गाँव, गरीब, मजदूर और किसानों के हालत में सुधार नहीं हो पाना घोर चिंता का विषय है। यदि केंद्र और राज्य सरकार वास्तव में किसानों के विभिन्न समस्याओं को लेकर गंभीर हैं तो उन्हें इस दिशा में ठोस और निर्णायक कदम उठाने चाहिए ताकि किसानों के समस्याओं का समाधान हो सके। यह व्यापक जनहित, राज्यहित और राष्ट्रहित में होगा।
केंद्र और राज्य सरकार से हमारी मांगें :-
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“किसानों का कर्ज माफ़ हो।”
“बाढ़ और सुखाड़ का स्थायी निदान हो।”
“प्राकृतिक आपदा में नष्ट हुए फसलों का उचित मुआवजा मिले।”
“बंद पड़े सभी नल-कूप चालू हों।”
“किसानों को सरकारी बैंकों से आसानी से कर्ज मिले ताकि उन्हें साहूकारों से मुक्ति मिल सके।”
“मजदूरों का पलायन बंद हो।”
“किसानों को अधिक-से-अधिक खाद्य और डीजल अनुदान मिले।”
सरोज चौधरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
मिथिलांचल मुक्ति मोर्चा
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