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“शिक्षित बनें – विकसित बनें।”
“जो पढ़ेगा – वही बढ़ेगा।”
“बढ़ना है तो – पढ़ना होगा।”
शिक्षा हमें सोचना सिखाती है। जब तक हम दूसरों के सोच पर काम करते हैं तब तक दुःख ही पाते हैं। जब हम खुद सोचने लगते हैं तब हमें सुख की अनुभूति होती है।
हमें अपने बारे में जरूर सोचना चाहिए परन्तु दूसरों के बारे में भी गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए ताकि हम बेहतर समाज और बेहतर राष्ट्र का नव-निर्माण कर सकें।
हम जैसा सोचते हैं ठीक वैसा ही बन जाते हैं इसलिए हमें हमेशा अच्छा और बड़ा सोचना चाहिए। साहस, शक्ति और सहनशीलता ही सफलता का मूलमंत्र है।
याद रखें, हम अपने जीवन में जो कुछ करते हैं, उसे उपहास, विरोध और अंत में समर्थन के दौर से गुजरना ही पड़ता है इसलिए दुसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं इस बात की चिंता कभी नहीं करनी चाहिए।
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि, दुसरे लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं। हम अपने बारे में क्या सोचते हैं इससे हम पर जरूर फर्क पड़ता है।
“विश्वास कीजिये आप अपने आप पर, आप राष्ट्र निर्माता हैं।
आपके जैसा व्यक्तित्व पृथ्वी पर एक बार ही आता है।।”
आप यदि खुद पर विश्वास नहीं करेंगे तो, दुसरे आप पर कभी विश्वास नहीं करेंगे। और इसीलिए हमें अपने आप पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए।
“हमने यह ठाना है – फिर से राम राज लाना है।”
“आइये, मिलकर अभियान चलायें – बेहतर समाज और राष्ट्र बनायें।”
शब्दों को विराम – आपश्री को सादर जय सियाराम।
जय हिन्द। बहुत-बहुत धन्यवाद।
सरोज चौधरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
मिथिलांचल मुक्ति मोर्चा
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